“जिंदगी है क्या”

कभी अपने कभी सपने,कभी मिलती है तनहाई,
कभी गहरी कभी उथली,रिश्तों में है खाई,
जिंदगी दिखाती है क्या-क्या मंजर ये ना पूछों ……
कभी अंधेरे को फिर चीरकर,किरण कोई आई!
कभी नफरतें कभी मोहब्बते,कभी दर्द-रुसवाई,
कभी बेगुनाह ने जुर्म की,देखो सजा पाई,
जिंदगी के फ़ैसले कितने मनचले ये ना पूछों …….
यहाँ होती नही आपकी या मेरी सुनवाई!
कभी कल था अपना,कभी आज है, कभी होगी परछाई,
कभी हालातों की उस मार से,ना आवाज़ भी आई,
जिंदगी ने क्या लिखा किसी से ये ना पूछों ……
फिर भी सबको दुसरो की बस जिंदगी भाई!
लेखन- राशी अग्रवाल
गंज-बिजनौर